बिहार में बदलने लगा है राजनीतिक समीकरण


डॉ.समरेन्द्र पाठक

वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक

पटना। बिहार विधान सभा का चुनाव ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहा है, दल बदल का खेल जोर पकड़ने लगा है। इसके साथ ही राजनीतिक समीकरण भी बदलने लगे हैं।
राज्य में विधायकों के पाला बदल के साथ कौन किसके साथ मिलकर चुनाव लडेगा? यह भी स्पष्ट होने लगा है।
राजनीतिक गणकों के अनुसार महागठबंधन में राजद एवं कांग्रेस के अलावा वाम दल रह जाएंगे, जबकि राजग में जदयू एवं भाजपा के अलावा लोजपा एवं हम दिखाई देंगे।
महागठबंधन में शामिल रहे उपेन्द्र कुशवाहा एवं मुकेश सहनी की स्थिति अभी साफ नहीं है, वे इधर रहेंगे या उधर। संभावना ऐसी दिखाई दे रही है, कि अगर ये महागठबंधन में रहेंगे, तो इस बार इन्हें जरुरत की सीटें ही मिल पाएंगी।
देश के अन्य राज्यों में सक्रिय रांकपा, तृणमूल, सपा एवं बसपा भी बिहार में अपनी जमीन तलाशने में लगी है, किंतु चुनावी मैदान में उतरने को लेकर अभी तस्वीर साफ नहीं है।
राज्य में दोनों गठबंधनों का स्वाद चख चुके कई हस्तियां इस बार अपने दम पर चुनावी जंग में दिखाई देंगे। राजद के कद्दावर नेता रहे बाहुवली पप्पू यादव खुद का दल जनाधिकार पार्टी के प्रत्याशियों के पक्ष में मैदान में होंगे। हो सकता है, वह खुद भी चुनाव लड़ें?
इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा से अलग होकर नयी पार्टी बनाने वाले पूर्व सांसद डॉ.अरुण कुमार के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, कभी नीतीश कुमार के कैबिनेट की वरिष्ठ सदस्या रहीं डॉ.रेणु कुशवाहा एवं वर्ष 2014 में मधेपुरा से भाजपा के प्रत्याशी रहे इनके पति विजय कुशवाहा, पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र यादव आदि दिखाई देंगे।
पूर्व सांसद पूर्णमासी राम चंपारण इलाके में इस बार खुद की नवगठित पार्टी से गुल खिलाएंगे।ओवैसी की पार्टी भी मैदान में होंगी।
मिथिलांचल के 108 सीटों पर मिथिलावादी पार्टियां भी इस बार जोर आजमाईश करेंगी। इनका नारा भी प्रायः एक है। ये पार्टियां पृथक मिथिला राज्य की मांग को लेकर मैदान में होंगी।