साहित्यकार को मधुमक्खी बनना पड़ता है – राज्यपाल मृदुला सिन्हा

साहित्यकार मकड़ा नहीं हो सकता हैजो अपने अंदर से कुछ बाहर निकालकर जाले की तरह कथा को बुने। उसे मधुमक्खी बनना पड़ता है। एक ऐसी मधुमक्खीजो समाज की विभिन्न क्यारियों से पराग का संचय करके शहद बनाती हैजिससे समाज पुष्ट होता है। उन्होंने कहा कि साहित्यकार समाज की अच्छी चीजों को अपनी रचना में एक साथ पिरोता है। इस नज़रिये से देखें तो पत्रकार से कवि व उपन्यासकार बने सत्य प्रकाश असीम ने अपनी लेखनी से समाज को बहुत कुछ दिया है। यह उद्गार गोवा की राज्यपाल एवं जानीमानी साहित्यकार श्रीमती मृदुला सिन्हा ने दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार,कवि एवं लेखक सत्य प्रकाश असीम के प्रथम उपन्यास ‘योगिनी मंदिर’ के लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए व्यक्त किया।

योगिनी मंदिर’ वरिष्ठ पत्रकारकवि एवं लेखक सत्य प्रकाश असीम का पहला उपन्यास है। लोकार्पण समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुये राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा ने इस बात पर विशेष प्रसन्नता व्यक्त की कि पार्किन्संस जैसी बीमारी के बावजूद वह अब भी समाज को बहुत कुछ देने की आकांक्षा रखते हैं।

मृदुला सिन्हा ने कहा कि सत्य प्रकाश असीम ने अपने लगभग चार दशक के पत्रकारीय जीवन में समाज के जमीनी स्तर से लेकर ऊपर तक विभिन्न वर्ग के लोगों को बेहद करीब से देखा- समझा और अपनी लेखनी से समाज को बहुत कुछ दिया है। उपन्यास के कथावस्तु पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि इसके चरित्र आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। अपने अनुभव को असीम ने इस उपन्यास में ऐसी भाषा में व्यक्त किया हैजिसे सामान्य आदमी भी बड़ी आसानी से समझ सकता है। इसके पात्र बड़े सहज अंदाज में बड़ी बातें कह देते हैं। इसके पूर्व पिछले साल उनके काव्य संग्रह सुन समंदर का लोकार्पण पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने किया था।

उपन्यास की कथावस्तु के बारे में विस्तार से बताते हुये जानीमानी पत्रकार एवं आधुनिक नारी विमर्श की चर्चित लेखिका गीताश्री ने कहा कि इसमें पांच महिला चरित्र हैं और सभी चरित्र एक रूपक की तरह दिखते हैं। उपन्यास में गांव हैकस्बा हैमुस्लिम हैंहिन्दू हैं और ये सभी मनुष्यता के पक्ष में खड़े दिख रहे हैं। उपन्यास के दो पात्रों इमरती और पिंकी का उल्लेख करते हुये गीताश्री ने कहा कि निश्चित रूप से यह एक राजनीतिक उपन्यास है। 

लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक एवं जानेमाने कवि एवं रचनाकार लीलाधर मंडलोई ने की। श्री मंडलोई ने खुद को मुख्य अतिथि से कार्यक्रम का अध्यक्ष बनाये जाने पर कटाक्ष किये और कहा कि ऐसे गंभीर उपन्यास का लोकार्पण उत्सवधर्मिता की बजाय और गंभीरता से करने की आवश्यकता थी। नाराज मंडलोई ने उपन्यास को भी पत्रकारीय दृष्टि से लिखा सपाट उपन्यास करार दिया। दरअसल आयोजकों ने गोवा की राज्यपाल एवं हाल ही में 75 वर्ष पूरे कर चुकीं जानी मानी साहित्यकार श्रीमती मृदुला सिन्हा के आगमन पर उन्हें कार्यक्रम का मुख्य अतिथि और श्री मंडलोई को अध्यक्षता की जिम्मेवारी सौंप दीजो श्री मंडलोई को नागवार गुजरा। आयोजकों ने इस बदलाव के पीछे तर्क यह दिया कि राज्यपाल का पद एक संवैधानिक पद होता हैजिसकी गरिमा को बरकरार रखने के लिए ऐसा करना पड़ा।

विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित हिंदीमराठी व अंग्रेजी भाषाओं के जाने माने साहित्यकार एवं भारतीय विदेश सेवा के सचिव (प्रवासी मामले) ज्ञानेश्वर मुले ने कहा कि श्री असीम का उपन्यास मौजूदा दौर में एक दलित नारी के सामाजिक संघर्ष के साथ-साथ उसके राजनीतिक सफर की दास्तान दिलचस्पी से बयान करता है। इस मौके पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त मैथिली साहित्यकार गंगेश गुंजन अपने एक निकटस्थ परिजन के निधन के बावजूद समारोह में मौजूद रहे। उन्होंने योगिनी मंदिर को आज के दौर में दलित व नारी विमर्श पर केन्द्रित एक बेहतरीन उपन्यास की संज्ञा दी। इस मोके पर मौजूद कर्नल श्यामसुंदर शर्मा और प्रकाशक सुदर्शन चेरी ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

समारोह का संचालन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार ओंकारेश्वर पाण्डेय ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के बाद अनेक लेखकों ने दलित स्त्री के जीवन संघर्ष और उससे जुड़े विषयों पर केन्द्रित असंख्य कहानियां और उपन्यास लिखे हैंजिनमें उस दौर की दलित स्त्रियों की दशा-दिशा दिखायी देती है। लेकिन योगिनी मंदिर में मौजूदा दौर की दलित स्त्री और उन्हें चुनावों में आरक्षण मिलने के बाद आया बदलावजमींदारों के बदले स्वर और तेवर के साथ मजदूर से राजनेता बनी दलित स्त्री के जीवन दर्शन में आया बदलाव भी परिलक्षित होता है। आगंतुकों का स्वागत वरिष्ठ पत्रकार संजय राय ने किया और धन्यवाद ज्ञापन लोकार्पण समारोह के आयोजक “कलर फीचर्स ऑफ इंडिया” के निदेशक पुनीत प्रकाश ने किया। समारोह में बड़ी संख्या में पत्रकार, बुद्धिजीवी और समाजसेवी उपस्थित थे।

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