नई दिल्ली ।। बीते दिनों नई दिल्ली के जेएनयू विश्वविद्यालय में एक वर्कशाॅप आयोजित की गई। इस वर्कशाॅप का केंद्र रहा सूरदास जिनके पदों में विद्यापति की छाप मिलती थी। साथ ही विद्यापति के साहित्य की समाजिक प्रासंगिकता पर भी चर्चा की गई। इस वर्कशाॅप में अनेक विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। सभी भिन्न-भिन्न विषयों के विद्यार्थी हैं। वर्कशाॅप की शुरुआत एसोशिएट प्रोफेसर डाॅ सविता झा खान ने की। डाॅ खान ने कार्यशाला में विद्यापति के साहित्य के विभिन्न आयात पर प्रकाश डाला। साथ ही उनके साहित्य में समाहित समाजिकता की गूंज को उजागर किया। उन्होंने बताया कि उनका एक ग्रंथ पुरुष परीक्षा अ˜ुत है। यह एक मात्र ग्रंथ है भारत वर्ष, जिसमें स्त्री-पुरुष के सामनता की बात की गई है। इस पर चर्चा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि विद्यापति ने पदावली में आम आदमी को दैनिय कार्यों के माध्यम से बंधनों से स्वाधीन किया है। इसे विद्यापति ने मैथिली भाषा में लिखा है। अपने युग में लिखी यह पदावली अपने में अ˜ुत कार्य है। डाॅ खान ने कुछ कवियों, जैसे-सूरदास की विद्यापति सेेेे तुलना की है। जिसमें यह भी साबित हुआ है कि सूरदास, विद्यापति की नकल करते थे। अंत में उन्होंने कहा कि विद्यपति को समग्रता में देखने के लिए अभी भी काफी शोध करने की जरूरत है।
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