चाहे वह बॉलीवुड में आग लगाने वाली ‘राँझना’ रही हो या हॉलीवुड की पेशकश ‘टाइटैनिक’, इन सभी की सफलता का श्रेय जाता है उस जज़्बाती डोर को जो इनके चरित्रों कोदर्शकों से बांधता है।
पर यह बात सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं है। टेलीविज़न शोज़ के निर्माता भी इन्ही नक़्शे-कदम पर चलने की कोशिश कर रहे हैं, दर्शकों की संख्या और उसी के द्वाराटी.आर.पी. बढ़ाने के लिए। इसकी सबसे बड़ी मिसाल है बिग बॉस। इस शो में बिग बॉस के घर में बंदी प्रतियोगी और उनके परिवार के सदस्यों की आपस में बातचीत होती हुएनज़र आई। आपसी मनमुटाव के बावजूद जब हितेन और शिल्पा ने पुनीत के पिताजी के चरण छुए, उसी पल दर्शक यकायक भावुक हो गए। उसी दौरान जब बिग बॉस नेहितेन को उनकी पत्नी गौरी से मिलने की या बात करने की इजाज़त नकार दी, तब यह विवादास्पद फैंसला दर्शकों को अनुचित और अन्यायपूर्ण लगा। उन्होंने ट्विटर केमाध्यम से इसकी भारी निंदा की। यही बात इस परिस्थिति की गवाह है कि दर्शक वाकई में इस शो और इन प्रतियोगियों से किस हद तक जुड़े हुए हैं!
इसी विषय पर चर्चा करते हुए राजू सिंह राठौर, इंस्टाग्राम स्पेशलिस्ट बोले, ‘इस मास्टरस्ट्रोक कि मदद से यह शो अपनी टी.आर.पी. की चोटी तक पहुँच जाएगा। दरअसल यहएक पूर्व नियोजित फैंसला था जिससे मतभेदों के बीच लड़ाईयाँ और अप्रिय भावनाओं की आभा साथ में दिखी। सदियों से जज़्बातों ने उपभोक्ता के दिलो-दिमाग पर लम्बेसमय तक अपना असर बनाये रखने में एक एहम भूमिका निभाई है।’
कुछी दिनों पहले की बात है की ‘टाइटैनिक’ के निर्देशक ने जज़्बात की ताक़त के बारे में बात की। जब उनसे पूछा गया कि जैक को क्यों मरने दिया गया जब रोज़ के लिए उसेबचाये रखना मुमकिन था – उन्होंने बड़ा ही दिलचस्प जवाब दिया। निर्देशक जेम्स कैमेरून ने कहा कि ‘इसका उत्तर बहुत ही आसान है। कहानी के १४७ वे पन्ने पर जैक कीमौत लिखी थी। यह ज़रूर एक कलात्मक फ़ैसला था। सागर में बहती हुई लकड़ी का हिस्सा छोटा होने पर सिर्फ रोज़ उसका सहारा ले पाईं। जैक को बचाने के लिए वह काफीनहीं था।’
अपने वक्तव्य को पेश करते हुए उन्होंने कहा कि ‘इस फिल्म में जैक दर्शकों के इतने क़रीब आ चुका था कि टाइटैनिक जहाज़ के डूबने से उसकी मौत पर सभी को बहुतअफ़सोस हुआ। फिल्म उसे इतना लोकप्रिय बनाने में बेहद सफल रही। अगर इस फिल्म में उसकी जान बच जाती, तो यह फिल्म का अंत शायद बिगड़ जाता। यह बिछड़ने औरमरने की कहानी थी, इसलिए आखिरकार उसे जाना ही पड़ा।
निसंदेह यही सच है। फिल्म जितनी बार भी देखी जाए, उसका आकर्षण कभी घटता नहीं है। ‘टाइटैनिक’ फिल्म की बीसवीं सालगिरह पर इसे उत्तरी अमरीका के कुछ चुनिंदासिनेमा घरों में दिखाया गया।
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