किसने पढ़ी मीडिया की व्यथा!

नई दिल्ली। दुनिया के किसी भी प्रजातांत्रिक देश मे बिना सबल मीडिया के वहां प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली की अवधारणा संभव नही है। भारत में तो मीडिया को प्रजातंत्र का ‘चौथा स्तंभ’ कहा जाता। लेकिन अफसोस की बात यह है कि दमनकारी शक्तियों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मीडिया की धार को कमजोर करने का कुचक्र लगातार जारी है। ऐसे में प्रजातंत्र की मौलिकता प्रभावित होने के साथ सबल मीडिया पर असर पड़ना स्वाभाविक है।
बहरहाल भारत की बात करें, तो यहां के सुदूर इलाकों से लेकर बड़े महानगरों तक में हालिया कई घटनाएं सामने आई, जब दमनकारी शक्तियों द्वारा किसी न किसी रूप से कर्तव्य-निर्वाहन के दौरान मीडिया पर हमला किया गया। मीडिया की जुबान बंद करने की कोशिश की गई। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इन घटनाओं पर अंकुश की दिशा में सरकार द्वारा अबतक कोई सकारात्मक पहल नही किया गया है। यही वजह है कि मीडिया का दमन अनवरत जारी है। निःसंदेह यह देश के सबल लोकतंत्र के लिये शुभ-संकेत नही है।
ताजा घटना राजधानी दिल्ली की है।यहां काफी समय से सीलिंग की प्रक्रिया चल रही है। जब सीलिंग चल रही है, तो इसपर राजनीति भी स्वाभाविक है। घटना गुरुवार की दोपहर की है, जब खबर संकलन के दौरान एक मीडियाकर्मी पुलिसिया कोप का शिकार बन गया।
खबर के अनुसार लाजपत नगर इलाके में सीलिंग के दौरान पुलिस के एक आला अधिकारी ने किसी बात पर नाराज होकर एक दुकानदार को थप्पड़ जड़ दिया। तभी इस घटना का वहां खबर संकलन के लिए पहुंचे हिंदी दैनिक ‘जागरण’ के छायाकार विपिन शर्मा ने फ़ोटो खींच ली। यही फ़ोटो खींचना उक्त छायाकार के लिए परेशानी का सबब बन गया। चर्चा के अनुसार पुलिस ने छायाकार से कैमरा छीनकर फोटो डिलीट की। फिर छायाकार विपिन को थाने में बैठा लिया।
सवाल यह उठता है कि आखिर कब थमेगा मीडिया का उत्पीरण, इस विषय पर गंभीर मंथन व सकारात्मक पहल की जरूरत है। वरना मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में पर जाएगी, बात में दम है।

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