
नई दिल्ली। दस्यु सरगना मनोज मुखिया की गिरफ्तारी से साफ है कि अपराधी कितना भी शातिर क्यों न हो, वह लंबे समय तक कानून की नज़रों से नही बच सकता।
गांव कुरहिया, थाना जयनगर, जिला मधुबनी, बिहार निवासी व अपने समय का खूंखार डकैत मनोज मुखिया, पुत्र विष्णु मुखिया इतना शातिर है कि हर संभावित कोशिश के बाद भी इसे गिरफ्तार करने में दिल्ली पुलिस को सात साल लग गए। यह गिरफ्तार हुआ। लेकिन पुलिस टीम की कड़ी मशक्कत के बाद। दरअसल यह कभी बिहार, तो कभी नेपाल में छिपकर पुलिस टीम को लगातार चकमा देता रहा था।
सात साल पहले तक दिल्ली की अपराध जगत में मनोज मुखिया एक जाना पहचाना नाम था। तब इसका गिरोह बिहार से आकर दिल्ली में बेहद ही सावधानी पूर्वक व शातिराना अंदाज में डकैती की वारदात को अंजाम देता और वारदात के बाद बिहार लौट जाता था। शायद यही वजह था, यह गिरोह दिल्ली पुलिस की नज़रों से बचा रहा।
इस गिरोह का खुलासा तब हुआ, जब सात साल पहले दिल्ली के मॉडल टाउन इलाके में एक बड़ी डकैती हुई, जिसमे संलिप्त कुछ आरोपी गिरफ्तार हुए। उन आरोपियों से पूछताछ में पता चला कि इनका गिरोह बिहार से आकर दिल्ली में वारदात को अंजाम देता है।
दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की आरके पुरम स्थित STARS यूनिट के तेज-तर्रार ACP अरविंद कुमार के निर्देशन तथा सब इंस्पेक्टर नागेंद्र व सब इंस्पेक्टर चंदन कुमार के संयुक्त नेतृत्व में गठित एक विशेष पुलिस टीम ने जयनगर पुलिस की सहयोग से मनोज मुखिया को उसके पुश्तैनी गांव से हाल ही में तब गिरफ्तार किया, जब यह अपने परिजनों से मिलने गांव आया हुआ था।
बता दें कि मनोज मुखिया गिरोह ने सात साल पहले 2 मार्च, 2011 को दिल्ली के मॉडल टाउन इलाके में रहने वाली रेखा मक्कड़ के घर मे बड़ी डकैती डाली थी, जहां से चार लाख रुपये नकद व गहने लूटकर फरार हो गए थे। इस मामले में कुछ आरोपी पकड़े गए। उनसे पूछताछ में पता चला कि गिरोह का मास्टरमाइंड मनोज मुखिया है।
उक्त मामले में मनोज मुखिया पुलिस के हाथ नही आया, तो कोर्ट ने इसे भगोड़ा घोषित कर दिया। जबकि दिल्ली पुलिस ने इसकी गिरफ्तारी पर 20 हज़ार रुपये का इनाम घोषित कर दिया था।
ऐसे में निःसंदेह मनोज मुखिया की गिरफ्तारी दिल्ली पुलिस की एक बड़ी कामयाबी है।
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