‘भगवान के दर पर दिए जलाने से अच्छा है किसी वंचित के घर को रौशन करना’

विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्धघुमंतू जनजातियों की समस्‍याओं पर विचार करने के लिए 17 फरवरी को नई दिल्‍ली में एक राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य अतिथि केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री सुश्री उमा भारती थी। इस सम्‍मेलन में देशभर से आये इन जनजातियों के लगभग 700 प्रतिनिधियों ने हिस्‍सा लिया।

अपने संबोधन में उमा भारती ने कहा कि ‘देशभर में करीब 15 करोड़ से ज्यादा आबादी लोधी, लोहार, सांची, बावरिया, गुर्जर, निशाद और पाल सहित करीब 300 जनजातियों और उपजातियों की है, इस समाज को पहचान दिलाने के लिए गठित राष्ट्रीय ‘विमुक्त, घुमंतू एवं अर्धघुमंतु जनजाति आयोग’ की सिफारिश जल्द ही आने वाली है। उन्होंने कहा कि वे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से स्वयं ये आग्रह करेंगी कि इस आयोग की सिफारिशों को अविलंब लागू किया जाए ताकि समाज के इन वंचित लोगों को उनकी पहचान और न्याय मिल सके।

समाज में फैली असमानता को दूर करने पर जोर देते हुए उमा भारती जी ने कहा कि ‘भगवान के दर पर दिए जलाने से अच्छा है किसी वंचित के घर को रौशन करना’।

केन्‍द्र सरकार ने सन् 2014 में विमुक्‍तए घुमंतू और अर्द्धघुमंतू जनजातियों के लिए एक राष्‍ट्रीय आयोग का गठन किया था जो समय.समय पर इन जनजातियों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्‍य पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की सिफारिश करता रहता है। लेकिन विभिन्‍न सरकारी नियम.कानूनों के कारण यह प्रक्रिया बहुत धीमी है और जो जनजातियां छूट जाती हैं उनमें असंतोष फैलता है।

इस अवसर पर श्री लक्ष्मी नारायण लोधी, चेयरमैन राष्ट्रीय विमुक्‍त जनजाति विकास परिषद, उत्तरप्रदेश, समाजसेवी हुकुम सिंह देसराजन लोधी, डॉ बलराम सिंह, अनूपशहर के विधायक श्री संजय शर्मा व अन्य गणमान्य मौजूद थें।

ब्रिटिश राज के जमाने में सन् 1871 के अपराधी जनजाति अधिनियम के तहत इन जनजातियों को अपराधी घोषित कर दिया गया था। सन् 1911 एवं1924 में इस अधिनियम में संशोधन किए गए। स्‍वतंत्रता के बाद अयंगार समिति की सिफारिशों के आधार पर सन् 1952 में 1871 के इस अधिनियम को समाप्‍त कर दिया गया और तब से इन जनजातियों के लिए विमुक्‍त जनजाति शब्‍द का इस्‍तेमाल किया जाता है। हालांकि स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति के बाद इनमें से कई जातियों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्‍य पिछड़ा वर्ग की सूची में डाल दिया गया। लेकिन इसके बावजूद अभी भी ऐसी 300 से अधिक जनजातियां मौजूद हैं जिन्‍हें इन तीनों में से किसी भी वर्ग में स्‍थान नहीं मिल सका है।

विमुक्त जनजातियों के इतिहास पर एक नजर डाले तो पता चलता है कि अंग्रेजों के  शासनकाल में इन जनजातियों के लोग कभी अंग्रेजों के आगे झुके नहीं। इनमें गजब की देशभक्ति की भावना रही और इन्‍होंने कभी अग्रेजों के वर्चस्व को स्वीकार नहीं किया और इसी कारण से अंग्रेज इन विमुक्त जनजातियों से हमेशा परेशान रहते थे। अंग्रेजों ने सन् 1871 के क्रिमिनल ट्राइबल एक्ट के जरिए इन जनजातियों की देशभक्ति की भावना को अपराध घोषित कर दिया और इन्‍हें अन्य जातियों से अलग थलग कर दिया।विश्‍व इतिहास की संभवतः यह पहली घटना है जिसमें किसी सरकार ने किसी जाति के सभी लोगों को अपराधी घोषित कर दिया और उन्‍हें समाज से बहिष्कृत कर दिया। यानी इस समाज में महिलाएंए बच्चे, बूढ़े, बीमार, असहाय और गरीब सभी अपराधी घोषित हो गए।

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