कृषि व किसानों के लिए निराशाजनक है बजट-डॉ राजाराम त्रिपाठी

अखिल भारतीय किसान संघ (आईफा)* के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने गुरुवार को बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए केंद्र सरकार पर सीधा निशाना साधते हुए पूछा है कि क्या यही अच्छे दिन हैं? डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि बजट में किसानों के लिए कुछ भी नहीं है. उन्होंने कहा कि केवल सब्जबाग दिखाकर लोगों को दिग्भ्रमित करने का काम किया जा रहा है. यह सरकार किसान विरोधी है और ग्रामीण विकास की वादे तथा दावे खोखले हैं और इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है.
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि बजट में कृषि ऋण में 11 लाख करोड़ का इजाफा करने की सरकार ने घोषणा करते हुए वाहवाही लूटने की कोशिश कर रही है, जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि इस घोषणा का लाभ लघु व सीमांत किसानों को मिलने के बजाय बड़े किसानों व कृषि व्यवसाय से संलग्न लोगों को होगा. वैसे भी अतीत की स्थितियां बयां करती है कि ऋण सीमा बढ़ाने से किसानों का भला होने के बजाय इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. किसान कर्ज के मकड़जाल में उलझ जाते हैं और अंततः आत्महत्याओं की संख्या बढ़ जाती है.
वहीं जहां किसानों को उनके उपज की लागत का न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना देने की बात कही गई है, तो मजे कि बात यह है कि जो लागत तय करने का सरकारी तंत्र है, वह तंत्र ही भ्रमित है तो जब लागत ही सटीक रूप से तय हो पाती है तब  न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना देने की बात हवा हवाई ही है. और यह उपज की खरीद भी अगले वर्ष से होगी. अर्थात अभी तुरंत किसानों को कोई लाभ नहीं मिलने वाला है.
दूसरी बात की सरकार ने बजट में 42 फूड पार्क बनाने की घोषणा की है, जबकि बीते वर्ष के बजट में जो 35 फूड पार्क बनाने की घोषणा की गई थी, वह अभी भी आधा-अधूरा ही है. वैसे में यह नहीं घोषणा केवल लोकलुभावन ही है. सरकार की गंभीरता का इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि लघु व कुटीर उद्योगों के विकास के लिए 200 करोड़ और स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए दो लाख 40 हजार करोड़ रुपये आवंटित किया गया है. उल्लेखनीय है कि देश की 68.84 फीसदी आबादी गांवों में निवास करती है तथा उनकी आजीविका में लघु व कुटीर उद्योगों का काफी महत्व है ऐसे में 200 करोड़ रुपये इस क्षेत्र के लिए नकाफी तो है ही. ऐसी स्थिति में ग्रामीणों का पलायन होगा और खेती-किसानी पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. वित्तमंत्री ने खाद्य प्रसंस्करण के लिए 1400 करोड़ रुपये आवंटित की है, जब कि प्रतिवर्ष खाद्य प्रसंस्करण के अभाव में 92 हजार करोड़ रुपये मूल्य के फल और सब्जियां सड़ जाती है और फेंकी जाती है. सिंचाई को लेकर कोई दूरगामी योजना नहीं दिखी. जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात की जा रही है लेकिन रसायनिक खाद के मद की कितनी राशि को जैविक खेती के लिए हस्तांतरित किया जाएगा, इस पर कोई स्पष्ट कुछ नहीं कहा गया है. वहीं जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण पर18 प्रतिशत जीएसटी लगाया गया है. ऐसे में जैविक खेती को कैसे बढ़ावा मिलेगा. यह एक बड़ा सवाल है. अगर इस सरकार की कृषि और किसानों की प्रति इतनी ही गंभीरता होती तो वह आंकड़ों की शक्ल में हमारे सामने होती, लेकिन वर्तमान में स्थिति यह है कि सरकार वित्त वर्ष 2018-19 में कृषि विकास दर 4.1 फीसदी तक होने का दावा कर रही थी लेकिन  कृषि विकास दर 2.1 फीसदी ही रहा. स्वास्थ्य बीमा के लिए 50 हजार करोड़ रुपये आवंटित किया गया है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की बुनियादी ढांचे की स्थिति बदहाल है ऐसे में यह ग्रामीणों के लिए कम और बीमा कंपनियों की हितों को ज्यादा लाभ पहुंचायेगा.
कुल मिला कर यह बजट देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में कम तथा वोटरों को लुभाने में अपनी अहम भूमिका निभायेगा.

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